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The Journey of Poetry
सुख़न का सफ़र कब शुरू हुआ यह कहना तो शायद मुश्किल है। पर यह सफ़र कई दौर से गुज़रा। पहले तो उर्दू से शनासाई हुई। बचपन के दिनों में दूरदर्शन पर आने वाले प्रोग्राम उन में इस्तेमाल की जाने वाली उर्दू एवं शायरी दोनों ही दिल को बहुत लुभाते थे। उन्हीं को सुनते-सुनाते उर्दू और शायरी से मुहब्बत का एहसास हो गया था। फिर एक लंबा दौर आया जिसमें कविताओं और ग़ज़लों में अपने जज़्बात को बयान करने का सफ़र शुरू हुआ। फ़न की समझ उतनी नहीं थी। मगर कुछ शायराना अंदाज़ में बात कहने जितनी क़ाबिलियत पनपने लगी। इसी दौर में कई दिग्गज शायरों और ग़ज़ल गायकों को सुनने का सौभाग्य मिला। जब अच्छे लोगों को सुनते हैं तो उसका थोड़ा बहुत असर आपके काम पर हो ही जाता है। फिर वह मुझ जैसा अदना सा शायर ही क्यों न हो। जो जज़्बात महसूस हुए उन्हें शायरी और कविताओं के ज़रिए बयान किया। और महसूस किया कि सिर्फ अपनी ही ज़िंदगी को क़रीब से जानकर हम कितना कुछ समझ सकते हैं। या यूँ कह लीजिए:
मैंने हर पन्ना पलटा हर लफ़्ज़ को छू के देखा
सीखा सभी से पर ज़िंदगी सी तो कोई किताब नहीं
उम्र के बीच में ऐसा दौर आया जब रोज़मर्रा की ज़िंदगी में मसरूफ़ियत इस क़दर बढ़ गई कि लिखना कम हो गया। पर वक़्त के साथ शायरी से रिश्ता और भी गहरा होता गया। कहीं कोई अच्छी ग़ज़ल सुनाई पड़ती तो दिल को सुकून मिलता। ज़िंदगी का सफ़र चलता रहा और जब कभी आमद हुई तो उसे पन्ने पर उतार दिया। जैसे-जैसे वक़्त बीता मन में इच्छा हुई शायरी के फ़न को बेहतर समझने की। शुक्र है इंटरनेट का और रेख़्ता का जिनकी वजह से अदबी शायरी के हुनर को बेहतर तरीक़े से समझने का ज़रिया मिला। इस के साथ अच्छे शायरों को और ध्यान से पढ़ा जिससे फ़न को समझने में मदद मिली। और शुरू हुआ सुख़न के सफ़र का दौर जिसमें अपनी शायरी में अदब का निखार लाना शुरु किया। वह सफ़र जो बयान-ए-जज़्बात से शुरु हुआ उसमें धीरे-धीरे जैसे पुख़्तगी पनपने लगी हो।
अब अच्छी सुख़न ‘नदीम’ मिले न मिले
हमने तो मुक़द्दर बस आज़मा लिया
यह सफ़र ताउम्र यूँ ही चलता रहेगा।

