Rafi Sahab Ne Kiya Shabdon Par Jaadu (Part 1)
अक्सर हम रफ़ी साहब को उनकी मख़मली और जादूभरी आवाज़ के लिए जानते हैं। मगर इस पोस्ट में मैं रफ़ी साहब की एक ऐसी ख़ासियत की बात करना चाहूँगा जिसका लुत्फ़ तो आपने यक़ीनन उठाया होगा पर शायद उस पर ग़ौर नहीं किया होगा। और ग़ौर करें भी कैसे? रफ़ी साहब महज़ एक लाइन में इतना कुछ निभा जाते थे कि उनके जादू को समझने के लिए भी वक़्त लगता है। यह शेर मेरी इस कोशिश को बयाँ करता है।
उनके फ़न को बयाँ करें, ऐसे मेरे अल्फ़ाज़ नहीं।
कोशिश कर रहा हूँ वरना मुझ में तो कोई बात नहीं।।
तो चलिए, आज हम बात करेंगे रफ़ी साहब की शब्दों पर किए जादू की। जी, बिल्कुल सही पढ़ा आपने। रफ़ी साहब न सिर्फ गायकी में बल्कि शब्दों पर भी जादू करते थे। उनकी शब्दों की समझ व उच्चारण की तो कईं मिसाल हैं। जैसे कि जिस तरह ‘मुहब्बत’ शब्द उन्होंने ‘जंगली’ फिल्म के इस गाने में गाया है। अगर आप इसे सिर्फ सुन भी रहें हो तो इंतिहा का एहसास हो ही जाता है।
लेकिन यह तो उनकी गायकी का सिर्फ एक पहलू हुआ जिसमें वह गाने की मूल भावना को महसूस कराते थे। रफ़ी साहब के कईं गानों को अगर आप ध्यान से सुनें तो पता चलता है कि कोई भी शब्द कानों को चुभता नहीं या भारी नहीं पड़ता। यह महज़ इत्तिफ़ाक़ नहीं है। या सिर्फ उनकी मख़मली आवाज़ का जादू भी नहीं है। यह समझ-बूझ कर की गयी जादूगरी है। और रफ़ी साहब इसे इतनी बख़ूबी अदा करते थे कि पता भी नहीं चलता। इसलिए मैं अब कुछ ऐसे गीतों की बात करुँगा जिन में उनकी यह जादूगरी साफ नज़र आती है।
आपको ‘अमर अकबर एन्थोनी’ की वह मक़बूल क़व्वाली तो ज़रुर याद होगी – ‘पर्दा है पर्दा’। इसकी शुरूआत में ‘शबाब पे मैं ज़रा सी शराब फेकूंगा’ में जिस तरह रफ़ी साहब ने ‘फेकूंगा’ गाया है उस पर ग़ौर करें। ‘फ’ के उच्चारण पर ध्यान दीजिएगा।
इसी कव्वाली के बीच में एक टुकड़ा है – ‘कहाँ ठहरती है जाकर मेरी नज़र देखें’। इसमें रफ़ी साहब ने जिस तरह ‘ठहरती’ गाया है (‘ठ’ के उच्चारण पर ग़ौर करें) उस से साफ पता चलता है कि वह सोच-समझ कर इस तरह गाते थे कि हर शब्द कानों पर मुलायम रहे। यक़ीं नहीं होता तो आप ख़ुद सुन लीजिए।
या फिर ‘संगम’ फिल्म के ‘यह मेरा प्रेम पत्र पढ़कर’ प्रसिद्ध गीत में जिस तरह से रफ़ी साहब ने ‘पत्र’ गाया है (‘त्र’ के उच्चारण पर ग़ौर करें), वह एकदम मुलायम सुनाई पड़ता है। ज़रा सुन कर देखिए।
जी, यह जादू है रफ़ी साहब का। वैसे यह अदा वह अपने कईं गानों में अपनाते थे। पर सुनने वाले गाने का लुत्फ़ उठाने में इतने मशग़ूल हो जाते हैं कि पता ही नहीं चलता। अब ‘मेरे हमदम मेरे दोस्त’ की ‘हुई शाम उनका ख़याल आ गया’ ग़ज़ल ले लीजिए। इस में जिस तरह से रफ़ी साहब ने ‘ख़याल’ शब्द मुखड़े को पहली बार गाते हुए गाया है और जिस तरह से दूसरी बार गाया है (‘ख़’ के उच्चारण पर ग़ौर करें) उसके फर्क को आप सुनें तो समझ में आता है कि वह कितनी बारिक़ी से शब्दों का उच्चारण करते थे। शब्द सुनाई भी दे पर मुलायमत बरक़रार रहे। आप ख़ुद सुन कर देखिए।
और ‘मेरे हमदम मेरे दोस्त’ के ही ‘छलकाए जाम’ गीत में फिर से रफ़ी साहब ने जिस तरह से ‘छलकाए’ गाया है (‘छ’ के उच्चारण पर ग़ौर करें) वह क़ाबिल-ए-दाद है।
जी हाँ, असर तो हमें महसूस होता है पर उनकी इस जादूगरी को समझने के लिए ध्यान से सुनना पड़ता है। पर वह जादू ही क्या जो इतनी आसानी से समझ में आ जाए! और रफ़ी साहब की गायकी में ऐसी कितनी जादूगरी भरी पड़ी है जो पता ही नहीं चलती, पर उसका असर दिल को छू जाता है। तो किया न हमारे रफ़ी साहब शब्दों पर भी जादू? अगर आप रफ़ी साहब के ऐसे गाने शेअर करना चाहें जिनमें उन्होंने शब्दों की जादूगरी दिखाई है तो कॅमेंट्स में लिखिए।
इससे पहले कि मैं आपकी इजाज़त लूँ, एक दिलचस्प सवाल रफ़ी साहब के चाहने वालों के लिए। रफ़ी साहब ने एक गाने में एक ‘मुंबईया शब्द’ बड़े ही मीठे अंदाज़ में गाया है। कौनसा है वह शब्द और कौनसा है वह गाना? कॅमेंट्स में बताइए।
उत्तर जानने के लिए यहाँ क्लिक करें
जवाब है ‘सुहाग’ फिल्म का दोस्ती पर प्रसिद्ध गाना ‘ए यार सुन यारी तेरी’ और उसमें बड़े ही प्यारे अंदाज़ मैं रफ़ी साहब ने ‘जवाबिच’ शब्द गाया है (जिसका मतलब है ‘जवाब ही’)। क्या आपने सही सोचा था?
अगली पोस्ट में हम बात करेंगे रफ़ी साहब की शब्दों पर जादूगरी की जिसमें उन्होंने सिर्फ विशेष शब्दों को ऊँची आवाज़ या सख़्त अंदाज़ में गाया है। जी, इस पोस्ट के ठीक विपरीत!
जल्द मिलेंगे,
– नितिन
Wonderful!
He was voice of God, hence, everything about Rafi Sahab is likeable. And, however much one may praise him is less.
मैं इतना ही कहुंगा नितीन की ” तुम महोम्मद रफी से बहुत प्यार करते हो ” अच्छा है . तुम्हारा प्यार भी काबील ए तारीफ है
बहोत बढीया
However much one may praise him wil always be less as he was the voice of God hence, everything about Rafi Sahab is likeable.
रफी साहब तो अदभुत हैं।
उनकी मखमली आवाज़ एवं गायकी तो अविश्वसनीय है, और सीधे आपके दिलो दिमाग पर अपना प्रभाव छोड़ती है।
उत्कृष्ट लेखन… बहुत गहराई से अध्ययन कर लिखा गया है…”ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर” का फिल्मांकन विशेष रुप से दिल को छू गया… रफ़ी साहब का जवाब नहीं…
Certainly his mastery was exemplary but you have brought a new dynamic that my untrained ears had never picked up before. Like you do eloquently wrote:
पर वह जादू ही क्या जो इतनी आसानी से समझ में आ जाए!
रफी साहब जीस भी गीत में ” रात ” ,
” घर ” ये शब्द आते हो,,, उस पर गौर फरमाइए…