Rafi Sahab Ne Kiya Shabdon Par Jaadu (Part 3)
पिछली दो पोस्टों में हम ने बात की है रफ़ी साहब ने शब्दों पर की जादूगरी की जिसमें वह कुछ शब्दों को कोमल अंदाज़ में गाते थे ताकि कोई भी शब्द कानों को चुभे नहीं, और इसके ठीक विपरीत जब उन्हें श्रोताओं का ध्यान खींचना होता था तो सिर्फ एक शब्द को वह ऊँचे स्वर या कठोर अंदाज़ में गाते थे। और यह सब वे इतनी सहजता से करते थे कि सुनने वालों को सिर्फ असर महसूस होता है, उस के पीछे की जादूगरी नहीं। इसी सिलसिले को जारी रखते हुए अब हम रफ़ी साहब की शब्दों पर की जादूगरी को एक और नज़रिए से देखेंगे। आज हम बात करेंगे रफ़ी साहब के कुछ ऐसे गानों की जिन में उन्होंने कुछ पंक्तियाँ गाई नहीं बल्कि बोली हैं, और वह भी जहाँ पाश्र्व संगीत या तो बिल्कुल ही नहीं है या बहुत ही कम है। आप महसूस करेंगे कि रफ़ी साहब सिर्फ बोलकर भी वैसी ही जादूगरी कर जाते थे जो वह गाकर करते थे।
इस का एक बेहतरीन उदाहरण है ‘गंगा जमुना’ फिल्म का सुप्रसिद्ध गीत ‘नैन लड़ जई हैं तो मनवा मा कसक होईबे करी’। इस में एक टुकड़ा है जो रफ़ी साहब ने पहले बोला है और फिर गाया है – ‘हाए! होई गवा मनमा मोरे तिरछी नजर का हल्ला’। इस में देखिए रफ़ी साहब ने ‘हाए’ कितने मुलायम और ‘हल्ला’ कितने जोश भरे अंदाज़ में गाया है। यानी एक ही पंक्ति में दो अलग-अलग भाव!
इसी गीत में एक और ऐसा ही टुकड़ा है – ‘रुप को मनमा बसाईबा तो बुरा का होई है’, जो रफ़ी साहब ने पहले बोला है और फिर गाया है। उस में भी हम उनके नटखट अंदाज़ का लुत्फ़ उठाते हैं।
एक और ख़ूबसूरत मिसाल है ‘राजकुमार’ फिल्म का गीत ‘दिलरुबा, दिल पे तू, यह सितम किए जा’। इस में एक टुकड़ा है ‘हाए! दिल की गहराईयों को चीरता हुआ यह दर्द…’। रफ़ी साहब ने यह इतने रोमांटिक अंदाज़ में बोला है कि क्या कहने! आप भी सुनिए और रफ़ी साहब की जादूगरी का आनंद उठाइए।
आया न मज़ा? अब चूँकि इस गाने की बात निकली है तो इस में रफ़ी साहब की गायकी की एक दुर्लभ अदा देखने को मिलती है। जिस तरह से रफ़ी साहब ने फॉलसेटो गाया है वह उन के ऊँचे स्वर में गाए गीतों से बिल्कुल अलग है। अगर आप ने पहले नहीं सुना है तो यक़ीनन आपको हैरानी होगी कि रफ़ी साहब इस शैली में भी कितने आराम से गा सकते थे।
चलिए अब आगे बढ़ते हैं। ‘जीने की राह’ फिल्म का एक प्यारा गीत है ‘इक बंजारा गाए, जीवन के गीत सुनाए’। इस में रफ़ी साहब ने दो पंक्तियाँ बड़े ही मीठे अंदाज़ में बोली हैं जो गीत का परिचय देती हैं – ‘सुनो इक तराना, नया इक फ़साना…’। इन्हें सुन कर जैसे दिल को सुबह की ठंडी हवा का एक झोंका छू कर जाता है।
‘हम किसी से कम नहीं’ फिल्म की सुप्रसिद्ध कव्वाली ‘हैं अगर दुश्मन दुश्मन’ की बात करें तो इसमें भी एक टुकड़ा है जिसे रफ़ी साहब ने सिर्फ बोला है – ‘बैठे हैं तेरे दर पे तो कुछ कर के उठेंगे, या तुझ को ही ले जाएंगे या मर के उठेंगे’। इसका ज़िक्र मैंने पहले भी एक पोस्ट में किया है। रफ़ी साहब ने इसकी शुरुआत में ‘बैठे हैं तेरे दर पे’ बिल्कुल आरामदेह तरह से बोला है और ‘मर के उठेंगे’ थोड़े उत्तेजित अंदाज़ में। ज़रा सुन के देखिए।
अगर आप भी ऐसे गाने शेअर करना चाहते हैं जिन में रफ़ी साहब ने कुछ हिस्सा सिर्फ बोला है तो कॅमेंट्स में लिखिए।
ख़ुश रहिए और ऐसे सुंदर गानों का लुत्फ़ उठाते रहिए,
– नितिन
I am curious if this particular aspect is more Rafi Sahab or music/director’s choice. Still being able to smoothly pull it off is his mastery.